चौपाई
सत्युग सत्य काल का द्योतक।
सच्चे इंसानों का पोषक।।
सात्विक भावों की यह धारा।
सब कुछ दिखता अनुपम प्यारा।।
ब्रह्म मुहुर्त सदा रहता है।
सबमें निर्मल मन बसता है।।
बुद्धि सुगंधित मानववादी।
है विवेक अतुलित शिववादी।।
परमारथ का यह विद्यालय।
श्वेत साफ स्वच्छ दृढ़ आलय।।
दिव्य मनोहर अविरल सागर।
सत्व सरल सहजामृत साक्षर।।
सबमें ब्रह्मणत्व दिखता है।
हर मानव कविता लिखता है।
महा काव्य की रचना होती।
नैतिकता मधु रोटी पोती।।
द्वेष कपट का अंत काल है।
माया रहित अदम्म्य चाल है।
यहां सभी अपने लगते हैं।
दैत्य दनुज भगने लगाते हैं।।
सत शिव सुंदर सब खुश रहते।
आत्मवाद का किस्सा कहते।।
लोकातीत मूल्य का गायन।
भोगवाद लगता जिमि डायन।।
दुग्ध पवित्र नीर अति पावन।
मंद पवन शीतल मनभावन।।
भीतर बाहर गंगा बहती।
मनोवृत्ति में शुचिता रहती।।
रचनाकार: डॉक्टर रामबली मिश्र
९८३८४५३८०१
Haaya meer
02-Nov-2022 05:41 PM
Amazing
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Muskan khan
02-Nov-2022 05:00 PM
Wonderful
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Sachin dev
02-Nov-2022 04:31 PM
Nice 👌
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